Madhu varma

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लेखनी कविता - भारत महिमा -जयशंकर प्रसाद

भारत महिमा -जयशंकर प्रसाद

हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार ।
 उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक-हार ।।

 जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक ।
 व्योम-तुम पुँज हुआ तब नाश, अखिल संसृति हो उठी अशोक ।।

 विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत ।
 सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।।

 बचाकर बीच रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत ।
 अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत ।।

 सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता का विकास ।
 पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास ।।

 सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह ।
 दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह ।।

 धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद ।
 हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद ।।

 विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम ।
 भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम ।

 यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि ।
 मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि ।।

 किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं ।
 हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं ।।

 जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर ।
 खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर ।।

 चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न ।
 हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न ।।

 हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव ।
 वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव ।।

 वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान ।
 वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान ।।

 जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष ।
 निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।

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